तेरे मेरे दरमियाँ वक़्त बस ठहरा ही था,
बहानों को तेरे मैंने मुहोब्बत समझा ही था ।
उन झुकती पलकों ने नजदीकियां क्या खूब लायी ,
लबों पे मेरे निशान छोड़े तूने कुछ इस तरह !!
कश्मकश में ये इज़हार बस हुवा ही था,
गुनाहों को तेरे रंग चढ़ा ही था। .
शाम उतरी ही थी के खता तेरे महफ़िल ने कुछ ऐसी ढ़ायी। .
रंग हिना का मेरे फ़िका पड़ने लगा कुछ इस तरह!!
ये हुस्न तेरे रंग में बस रंगा ही था,
इन खुश्क आँखों से एक क़तरा बहा ही था। .
ठुकराने कि ज़िद तेरी क्या खूब रंग लायी ,
मांग मेरी तुमने उजाड़ी कुछ इस तरह !!
इस जिस्म पर तेरे होने के निशाँ बस चढ़े ही थे,
रस्मो से बंधे धागे बस अब टूट रहे थे।
हमें शिकायत करने कि भी गुंजाईश न छोड़ी तुमने गलिब।
वो महफ़िल और वो शहर तेरा तूने जमाया था कुछ इस तरह !!