Wednesday, January 8, 2014

कुछ अजनबीसे लगते हो !!..

तुम भी अब कुछ अजनबीसे लगते हो,
कुछ  अपनेसेजादा परायेसे  लगते हो। 
हमें गले लगानेकी जुर्रत  करपाए तुम,
आँखों से ही अपनी हार माने बैठे हों !!

अल्फ़ाज़ों से परे हो. . या सिर्फ  अल्फ़ाज़ों में सिमटे 
कुछ अपनाये हुवे से होया जादा ठुकराए हुवे से। 
हमें खिलनेका एक मौका  दे पाये तुम। 
जान गए हमउस कोठी के घुंगरू थे तुम्हे भाए।!!

उस दिन महफ़िल में देखा था तुम्हे
कुछ बेफ़िक्र से थे तुमया जादा नाराज़ से थे। 
हमें अंदाजा बांधनेके वक़्त  देसके तुम। 
महफ़िल तुम्हारी थी, या तुम महफ़िल के थे!! 

उन इशारों कि तरह तुम भी हमेशा फिसलते रहे हो।  
आज इस हवेली तो कल उस कोठी चढ़े हो। 
हमें खुद ही कि नज़रोंमे उठा गए तुम। 
बस..  तुम भी अब कुछ अजनबीसे लगते हो !!

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