एक बौछार से थे तुम..
अल्फाजों के दायरे में तुम आते ही नहीं थे..
फूंकने से हमेशा बुझा नहीं करते..
तुम फूंकते गए.. तो में और जलती गयी..
अब तनहा रेहनेका मजा आता है..
लेकिन ये रातके सन्नाटे तनहा रहने कहा देते है..
उस खिड़की तक में अपने आप को तनहा पाती हु बस..
उस दरवाजेसे जाते देखा था मैंने तुम्हे..
जादा कुछ हुवा नहीं.. कुछ ख्वाब बिखरे पड़े थे ..
कुछ परछाईयाँ अटकी पड़ी थी..
कुछ आंसू रुक से गए थे..
तुम्हारी चाहत हसने नहीं देती थी ..
और ये दुनिया रोने नहीं...
आज भी भीड़ में तुम्हे ही ढूंडती है ये नज़र..
आज भी वो हर इक शख्स कुछ कुछ तुमसा मालूम पड़ता है..
हाल ए दिल सुनाने की फितरत तो नहीं मेरी.. लेकिन ये राज तकलीफ दे जाता है हर साँस में..
अब लब्ज भी कुछ ज़ख़्मी से है..
रूठ जाते है हमसे..
सोचा था फूँक दू ये लब्ज सारे..
ढूंडा तो माचिस की तिल्लियां बिखरी पड़ी थी..
जो होना था वो होगया.. अब तो बिति बातोने चुभना बन्द करदिया..
फ़िर दर्द कैसा ??..
सिर्फ़ प्यार से तो ज़िन्दगी नही चलती ना.. छोड़ दू ये दुनिया तुम्हारे लिए, ये सही तो नहीं ना..
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