Sunday, October 14, 2012

चिट्ठियां ..


आज फिरसे खुले है वो ख़त पुराने ..
जो मुक्कम्मल न हो पाए रिश्ते पुराने ,

मुश्किल था रात तनहा बसर करना,
वो तेरा इमान बदलना,और आज फिरसे चोट खागई वो चिट्ठियां ..

दिल में रहगयी थी जो बात,आंसूओने दोहराई ..
फिर मुझसे गले लगकर रोयीं आज वो चिठियाँ ..

उन पिछले पन्नो से जब कभी गुजरनेका मौका आया ,
वो खुश्क आंखोमे तेरी धुवां बरसता नजर आया ..

वो गर्म सांसे तेरी आज भी महसूस करवाती है वो चिठियाँ ..
वो तेरे जिस्म की खुशबु,वो तेरा मुहँ फेरलेना,और गुमशुदासी वो चिट्ठियां ..

सिर्फ दरवाजे तक नजर आये थे तुम,और वो रातोंके सन्नाटे ..
आज भी खुदही का इंतज़ार करवाती है वो चिट्ठियां ..

फिर किसीने पत्थर उठाया था आज ..
तुम्हारे बिन कहे कुछ वादे और मेरे न पूछे हुवे ऐतबार, मुझहीको अंजान बनागयी वो चिट्ठियां ..

आज भी नजर आती है गलतफैमियां आँखों में तुम्हारी ..
और हाथ लगती है वो चिट्ठियां .. जो आज भी कुछ कुंवारिसी रह गयी है मेरी ..

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