आदत सी थी हमें गम बयां करनेकी.... प्यार की आड़ में खुदको शर्मिंदा करनेकी.. आज कल हमने गम बाँटना बंद करदिया.. और शराब को ओठोंसे लगाना शुरू कर दिया.. आज कल अब हम रोज़ ही गम पीते हैं.. पता नहीं क्यों लोग हमें शराबी कहते हैं.. जाम ओठोंसे आते आते रुक सा जाता हैं .. हमें तेरे चेहरे सा हर जाम में नजर आजाता हैं.. वो तेरा मुस्कुराना.. हाये.. आज फिर एक कसक सी छोड़ गया.. जाम झलकते झलकते तेरा चेहरा धुंदलासा करगाया.. तेरा चेहरा ढूंडनेकी नाकाम कोशिश में.. नजाने कितने जाम लबोंको प्यासा सा करगये.. और तुम हमेशा की तरह.. पीछे मुड़ना भुलसा गए.. इस आलम मे तुमसे दिलचस्प गुफ्तगू सी होजाती हैं.. और कुछ बातें बिना लफ्ज की रहजाती हैं.. आज कल गीली तिल्ल्लियाँ भी धुवाँ जलाती हैं.. और वो तेरी बाँहों की खनक.. आज भी बेकरार सा कर जाती हैं.. ये धुवाँ बुझता नहीं, जलाता मुझे रहता हैं.. और ये तेरा नशा.. खुदसे मुझे बेफिकर सा करजाता हैं.. अब हर शाम का सूरज इसी तरह डूबता हैं.. और लोग कहते हैं की मैं शराब में... उन्हें क्या पता, उस जाम में नशा, तेरी आँखों का होता हैं..
एका निवांत संध्याकाळी, रात्रीची नशा उतरेपर्यंत.. बेफिकीर पानांवर अलगद उतरलेलं काही..
Monday, October 15, 2012
जाम और तेरा नशा..
आदत सी थी हमें गम बयां करनेकी.... प्यार की आड़ में खुदको शर्मिंदा करनेकी.. आज कल हमने गम बाँटना बंद करदिया.. और शराब को ओठोंसे लगाना शुरू कर दिया.. आज कल अब हम रोज़ ही गम पीते हैं.. पता नहीं क्यों लोग हमें शराबी कहते हैं.. जाम ओठोंसे आते आते रुक सा जाता हैं .. हमें तेरे चेहरे सा हर जाम में नजर आजाता हैं.. वो तेरा मुस्कुराना.. हाये.. आज फिर एक कसक सी छोड़ गया.. जाम झलकते झलकते तेरा चेहरा धुंदलासा करगाया.. तेरा चेहरा ढूंडनेकी नाकाम कोशिश में.. नजाने कितने जाम लबोंको प्यासा सा करगये.. और तुम हमेशा की तरह.. पीछे मुड़ना भुलसा गए.. इस आलम मे तुमसे दिलचस्प गुफ्तगू सी होजाती हैं.. और कुछ बातें बिना लफ्ज की रहजाती हैं.. आज कल गीली तिल्ल्लियाँ भी धुवाँ जलाती हैं.. और वो तेरी बाँहों की खनक.. आज भी बेकरार सा कर जाती हैं.. ये धुवाँ बुझता नहीं, जलाता मुझे रहता हैं.. और ये तेरा नशा.. खुदसे मुझे बेफिकर सा करजाता हैं.. अब हर शाम का सूरज इसी तरह डूबता हैं.. और लोग कहते हैं की मैं शराब में... उन्हें क्या पता, उस जाम में नशा, तेरी आँखों का होता हैं..
Sunday, October 14, 2012
चिट्ठियां ..
जो मुक्कम्मल न हो पाए रिश्ते पुराने ,
मुश्किल था रात तनहा बसर करना,
वो तेरा इमान बदलना,और आज फिरसे चोट खागई वो चिट्ठियां ..
दिल में रहगयी थी जो बात,आंसूओने दोहराई ..
फिर मुझसे गले लगकर रोयीं आज वो चिठियाँ ..
उन पिछले पन्नो से जब कभी गुजरनेका मौका आया ,
वो खुश्क आंखोमे तेरी धुवां बरसता नजर आया ..
वो गर्म सांसे तेरी आज भी महसूस करवाती है वो चिठियाँ ..
वो तेरे जिस्म की खुशबु,वो तेरा मुहँ फेरलेना,और गुमशुदासी वो चिट्ठियां ..
सिर्फ दरवाजे तक नजर आये थे तुम,और वो रातोंके सन्नाटे ..
आज भी खुदही का इंतज़ार करवाती है वो चिट्ठियां ..
फिर किसीने पत्थर उठाया था आज ..
तुम्हारे बिन कहे कुछ वादे और मेरे न पूछे हुवे ऐतबार, मुझहीको अंजान बनागयी वो चिट्ठियां ..
आज भी नजर आती है गलतफैमियां आँखों में तुम्हारी ..
और हाथ लगती है वो चिट्ठियां .. जो आज भी कुछ कुंवारिसी रह गयी है मेरी ..
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