Friday, September 26, 2014

दोस्त ?

चेहरे का नकाब कुछ इस तरह उतार वो गया..
अपनी शख्सियत से खास वाकिफ करा गया !!

दोस्त कहा था कभी मैंने उसे..
रुपैय्या क्या और जान क्या, सबकुछ न्योछावर किया था उसके लिए..
देखीं तेरी खुदाई ऐ खुदा..
मरहम लगानेवाला ही आज जख्म  देकर चला गया!!

परवाह नहीं थी जब जमाना था खिलाफ ,
दर्द तो तब हुवा जब दोस्त रुसवा कर गया  !!

शौक से तो मुजरिम भी गुनाह नहीं करता ..
फुरसत से लेकिन ऐ दोस्त मुझे तबाह करने आगया !!

शिकायत भी क्या करू उसकी ..
जुर्म तो मेरा है, की मैंने ही दोस्त माना है !!

बस अब बात कुछ ऐसी है की..
आज वो दोस्ती भूल गया है ..और हम उस दोस्त को ढूंढ रहे हैं !!


--वैशाली 

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