Tuesday, October 14, 2014

कुछ तू भी .. कुछ में भी ..

हैरान  सा  कुछ  तू भी  है  कुछ  में  भी ..
दिलों को बांटता सा कुछ  तू  भी  है  कुछ  में भी  ..

प्यार  का  बुखार चढ़ा  कुछ  इस कदर ..
आईने  से  बातें  करता कुछ  तू  भी  है  कुछ  में  भी ..

वाहवाही में बेहक गया कुछ इस कदर.. ..
गुमशुदा  सा  आज  कुछ तू  भी  है  कुछ  में भी  ..

मंजिल पर  अकेला  खड़ा  कुछ  इस कदर ..
सुकून  ढूंढ़ता  आज कुछ  तू  भी  है  कुछ में  भी ..

गुरुर  था  खुद्की  बादशाहियत  पर कुछ  इस कदर ....
सहूलत  मांगता  आज  कुछ  तू  भी  है  कुछ में  भी ..

कसमें  थी  साथ निभनेकी कुछ  इस कदर ....
के वजह  ढूंढता  आज कुछ  तू  भी  है  कुछ में  भी

भुला  दिया तूने मुझे कुछ  इस कदर ..
लेकिन  रोता  तो  आज कुछ  तू  भी  है  कुछ में  भी ..

एहसास-ए-नशा  हुवा है कुछ  इस कदर ..
रजामंद  सा  आज  कुछ तू  भी  है , कुछ  में भी ..
हैरान  सा  कुछ  तू भी  है  कुछ  में  भी ..

--वैशाली


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