Thursday, November 11, 2010

ज़िक्र तुम्हारा...

बूंदों की पायल अनसुनीसी रहगयी,,

रैना बीतते-बीतते, ज़िक्र तुम्हारा करगई..

खुदसे कही बातें कहानी बनगय,

यादें ढलते-ढलते, ज़िक्र तुम्हारा करगई..

आंसू का चांदनी में चमकना इनायत बनगयी..

महफ़िल रुसवा होते- होते, ज़िक्र तुम्हारा करगई..

सांवरे पियाकी तसवीर अब रूह में समगायी..

ज़िन्दगी इम्तेहान लेते लेते, ज़िक्र तुम्हारा करगई..

इस रकीब के चलते, मुहोब्बत खफ़ा होगयी....

जिक्र तुम्हारा करते-करते, मौत रुसवा होगयी..

--वैशाली

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